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एनएल चर्चा 279: अविश्वास प्रस्ताव की राजनीतिक नौटंकी में पीछे छूटता मणिपुर का मुद्दा और डाटा प्रोटेक्शन बिल

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इस हफ्ते चर्चा में बातचीत के मुख्य विषय लोकसभा में विपक्ष की ओर से पेश किया गया अविश्वास प्रस्ताव, अमित शाह ने सदन में लंबा वक्तव्य देने में तोड़ा लाल बहादुर शास्त्री का रिकॉर्ड, संसद टीवी के प्रसारण में सत्ता पक्ष को ज्यादा और विपक्ष को कम टाइम स्क्रीन पर दिखाने का आरोप, राहुल गांधी पर फ्लाइंग किस देकर अश्लीलता फैलाने का आरोप और डाटा संरक्षण विधेयक आदि रहे. हफ्ते की अन्य बड़ी खबरों में अदालत में बृजभूषण शरण सिंह का बयान- किसी लड़की को छूना या गले लगाना यौन शोषण नहीं माना जा सकता, सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक साढ़े सात लाख लोगों का स्वास्थ्य बीमा योजना में एक ही नंबर से रजिस्ट्रेशन, बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे का मीडिया वेबसाइट न्यूज़क्लिक में चाइनीज़ फंडिंग का आरोप भी रहे.


इसके अलावा ईडी के दायरे में आए झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, हेमंत बिस्वा सरमा का बयान बहुविवाह की प्रथा को कानून बनाकर करेंगे समाप्त, डिजिटल डाटा संरक्षण विधेयक संसद से पारित, पियूष गोयल द्वारा विपक्ष के नेताओं को देशद्रोही कहने की घटनाओं ने भी हफ्तेभर में लोगों का ध्यान खींचा.


चर्चा में इस हफ्ते बतौर मेहमान न्यूज़लॉन्ड्री के मैनेजिंग एडिटर रमन कृपाल, वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी और मिस मेडुसा शामिल हुईं. इनके अलावा न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन ने भी चर्चा में भाग लिया. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल सवाल करते हैं, “संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर जो चर्चा हुई क्या उसमें मणिपुर के मुद्दे को विपक्ष स्पष्ट रूप से सामने लाने में सफल रहा?”


इस सवाल के जवाब में रमन कहते हैं, “यह जानने के लिए हमें यह पता होना चाहिए कि पिछले तीन महीनों में मणिपुर में क्या हुआ? आम आदमी यह जानना चाहता है कि तीन महीने की हिंसा को रोकने के लिए क्या कार्रवाई की गई, कैसे मरहम लगाने का काम किया गया? संसद में चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, सब के सब अपनी शेख़ी बघार रहे थे. राहुल गांधी कह रहे हैं कि मणिपुर में भारत माता की हत्या हुई. लेकिन कोई ये नहीं बता रहा कि दिन ब दिन हिंसा कैसे भड़की और लॉ एंड आर्डर में सरकार कहां असफल हुई?इस विषय पर अपने विचार रखते हुए आनंद कहते हैं, “कहीं न कहीं यह भी धारणा बनी कि यह अनावश्यक अविश्वास प्रस्ताव है. इसको केवल राजनीतिक सन्देश देने के लिए लाया गया है क्योंकि संख्याबल के लिहाज से इसमें कोई संघर्ष नहीं था. वहीं, एक राजनीतिक दांव के तौर पर भी इसमें कोई रोमांच नहीं था.”


इस विषय पर और विस्तार से जानने के लिए सुनिए पूरी चर्चा. इसके अलावा डाटा संरक्षण कानून पर भी मुख्य रूप से चर्चा हुई.


टाइम कोड्स

00:00:00 - 00:40:48 - जरूरी सूचना व कुछ सुर्खियां

00:41:00 - 01:10:07 - संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा

01:10:08 - 01:32:40 - सब्सक्राइबर्स के मेल

01:32:45 - 01:43:20 - डाटा संरक्षण विधेयक

01:43:21 - सलाह और सुझाव


ट्रांसक्रिप्शन: तस्नीम फातिमा

प्रोड्यूसरः चंचल गुप्ता

एडिटर: उमराव सिंह



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इसके अलावा ईडी के दायरे में आए झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, हेमंत बिस्वा सरमा का बयान बहुविवाह की प्रथा को कानून बनाकर करेंगे समाप्त, डिजिटल डाटा संरक्षण विधेयक संसद से पारित, पियूष गोयल द्वारा विपक्ष के नेताओं को देशद्रोही कहने की घटनाओं ने भी हफ्तेभर में लोगों का ध्यान खींचा.


चर्चा में इस हफ्ते बतौर मेहमान न्यूज़लॉन्ड्री के मैनेजिंग एडिटर रमन कृपाल, वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी और मिस मेडुसा शामिल हुईं. इनके अलावा न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन ने भी चर्चा में भाग लिया. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल सवाल करते हैं, “संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर जो चर्चा हुई क्या उसमें मणिपुर के मुद्दे को विपक्ष स्पष्ट रूप से सामने लाने में सफल रहा?”


इस सवाल के जवाब में रमन कहते हैं, “यह जानने के लिए हमें यह पता होना चाहिए कि पिछले तीन महीनों में मणिपुर में क्या हुआ? आम आदमी यह जानना चाहता है कि तीन महीने की हिंसा को रोकने के लिए क्या कार्रवाई की गई, कैसे मरहम लगाने का काम किया गया? संसद में चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, सब के सब अपनी शेख़ी बघार रहे थे. राहुल गांधी कह रहे हैं कि मणिपुर में भारत माता की हत्या हुई. लेकिन कोई ये नहीं बता रहा कि दिन ब दिन हिंसा कैसे भड़की और लॉ एंड आर्डर में सरकार कहां असफल हुई?इस विषय पर अपने विचार रखते हुए आनंद कहते हैं, “कहीं न कहीं यह भी धारणा बनी कि यह अनावश्यक अविश्वास प्रस्ताव है. इसको केवल राजनीतिक सन्देश देने के लिए लाया गया है क्योंकि संख्याबल के लिहाज से इसमें कोई संघर्ष नहीं था. वहीं, एक राजनीतिक दांव के तौर पर भी इसमें कोई रोमांच नहीं था.”


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