देश के लोगों को भी अब बेठकर महात्मा गांधी को याद करना होगा अगर उन्हें आत्मनिर्भर होना है
Manage episode 266474724 series 2662341
Contenuto fornito da Santosh Bhartiya. Tutti i contenuti dei podcast, inclusi episodi, grafica e descrizioni dei podcast, vengono caricati e forniti direttamente da Santosh Bhartiya o dal partner della piattaforma podcast. Se ritieni che qualcuno stia utilizzando la tua opera protetta da copyright senza la tua autorizzazione, puoi seguire la procedura descritta qui https://it.player.fm/legal.
मैं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को इस्स बात के लिए बधाई दूँगा कि उन्होंने चीन के साथ फ़िलहाल सीमा विवाद को शांत कार दिया।दोनो तरफ़ तनी हुईं बंदूक़ें थोड़ी सी नीचे आगई हैं। प्रधानमंत्री मोदी को लेकर के ज़्यादा सवाल नहीं हैं बस थोड़े से सवाल हैं और वो सवाल देश के नागरिकों के सवाल हैं। अगर हमारे देश के राष्ट्रीये सुरक्षा सलाहकार और जो दरसल एक फ़ैंटम के रूप में उभरे हैं, जिन्हें हर विषये का ज्ञान है और जो हर राष्ट्रिये संकट में सामने आकर के उसका हाल निकालते हैं, अगर उन्हें शामिल करना था तो उन्हें प्रारम्भ में ही शामिल क्यों नहीं किया गया ? हमारे २० जवानो की शहादत चीन-भारत सीमा में गलवान घाटी में क्यों हुई? ये प्रश्न इसलिए खड़ा होता है क्यों के तब फिर कुछ बयान याद आते हैं। एक बयान जिसका अभी तक कोई खंडन नहीं आया है प्रधानमंत्री जी का के, ना कोई हमारी सीमा में आया, ना किसी ने कहीं भी कोई क़ब्ज़ा किया और हमारी एक भी चौकी किसी के पास नहीं हैं, उन्होंने चीन का नाम कही नहीं लिया। लेकिन गलवान घाटी में और कोई देश है नहीं सिर्फ़ चीन है इसलिए ये मानना चाहिए के इशारे में उन्होंने चीन के बारे में ही कहा। अब टेलीविज़न चेनल कल से कह रहे हैं कि चीन वापस गया नहीं है हमने उससे पीछे धकेल दिया। सवाल ये है कि चीन अगर पीछे धकेल गाया तो चीन आ कहाँ से गया था क्योंकि प्रधानमंत्री ने तो इससे इनकार किया। कितना अंदर अगया था के उससे धकेल गया? चीनी मीडिया केह रहा है कि शांतिपूर्वक सारा काम हो गया। प्रश्न उठता है जो चीज़ चीन के लिए शांतिपूर्वक है इसका मतलब वो हमारे लिए शांतिपूर्वक सम्पन्न हुई ये आसान नहीं हुआ होगा। ये सवाल हम इसलिए खड़े कर रहे हैं क्यों कि हमारा मीडिया जीसस तरीक़े से चीन के ख़िलाफ़ भारतीय जनता की भावनाएँ भड़का रहा है या जागृत कर रहा है इसका मतलब कहीं ऐसा तो नहीं है कि हम अपने को तय्यार कर रहे हों चीन से एक छोटे युद्ध के लिए? चीन से युद्ध करना निर्भर तो चीन के ऊपर करेगा, ज़ाहिर है हम हमला नहीं करेंगे। पर हमारी जनता कनफ़्यूजन में आगई है कि कुछ चीजें क्यों की गाईं, जेसे चीन २ किलोमीटर पीछे चला गया ये ख़बर हमारे देश में, हमारे टेलीविजन चेनलाओं ने फेलाई। २ किलोमीटर कहाँ से पीछे चला गया? २ किलोमीटर पीछे अगर वो गया तो क्या वो २ किलोमीटर हमारी सीमा में आगया था? और जिससे फ़िंगर ४ और फ़िंगर ८ कहते हैं जहां पर हम अब तक गश्त लगा रहे थे वो जगह हमारे हाथ से निकल कर के वो बफ़्फ़र ज़ोन दोबाल साहाब ने कल बना दी चीन के विदेश मंत्री से बात कर। अगर वोह बफ़्फ़र ज़ोन थी जो हमारे क़ब्ज़े में थी इसका मतलब गणित लगाने पर संदेह पेदा होता है की चीन जहां था, चीन वहीं है हम पीछे हटे। ये सारे सवाल बचकाने सवाल हैं क्योंकि टेलीविजन चेनलों के रिपोर्ट को अगर हम देखें तो हम पाएँगे की हम १००% जीते हैं, हमारी जीत हुई है। और भविष्य की भी सम्भावना हमारे टेलीविजन चेनलों ने इस्स देश के लोगों में भर दी है के अब चीन आर्थिक मोर्चे पर भी परास्थ हो चुका है और सैनिक मोर्चे पर भी परास्थ होचुका है क्योंकि अमेरिका हमारे समर्थन में हिंद महासागर में भी आगया है, वो साउथ चीन-सी में भी आगया है। वो अब चीन के ऊपर हमला कर सकता है अगर चीन ने भारत की तरफ़ एक भी कदम बड़ाया। दूसरी तरफ़ पाकिस्तान और नेपाल हैं, वो चीन के साथ खड़े हुए हैं। इन सारी उलझनों के बीच में एक सवाल ये है के क्या हमारे विदेश मंत्री एस-जयशंकर इस्स पूरे दुवंध में असफ़ल साबित हुए हैं? क्योंकि एस-जयशंकर का सिर्फ़ एक बयान आया कि हमारे सैनिक, जो चीन से बात करने के लिए शुरू में बात करने के लिए करनाल संतोष बाबू के साथ जो दो हवलदार गए थे भारतीय सैना के और जिनको चिनियों ने लात घूसों और कील लगी रॉड से या लकड़ी के दंडे से मार गिराया था, उनकी शहादत हुई थी, जिनका ज़िक्र उन्न २० शहीदों में नहीं लिया जाता। उन्न ३ का क्या? वो शहीद नहीं थे क्या? ये छोटे छोटे सवाल दिमाग़ में इसलिए हैं कि एस-जयशंकर ने एक बयान दिया था के जो हमारे सिपाही गए थे वो निहत्थे नहीं थे उनके पास हथियार थे। अगर हथियार थे तो जब वो मरने के क़रीब थे तब भी वो हथियार क्यों नहीं चलाए? ये थोड़ी थोड़ी वो चूकें हैं जो सरकारी तंत्र कहता है और भूल जाता है के लोग उसमें से अपने अर्थ भी निकलेंगे। एस-जयशंकर असफ़ल हुए, पूरा विदेश विभाग असफ़ल हुआ, और हमारे राष्ट्रिये सुरक्षा सलाहकार उनकी २ घंटे विडीओ कॉन्फ़्रेन्स हुई चीन विदेश मंत्री के साथ, और विडीओ कॉन्फ़्रेन्स ख़त्म होते ही दोनो सरकारों को मिलकर के जो विज्ञप्ति निकालनी चाहिए थी उसके पहले ही घोषणा करदी की ये-ये फ़ैसला हो गाय। अब उसस फ़ैसले में हम अपनी जीत बाता रहे हैं, चीन अपनी जीत बता रहा है। ये लड़ाई चलती रहेगी, पर इस्स लड़ाई में जो और कमाल की चीज़ आइ, जीस पर सोशल मीडिया के ज़रिए पूरे देश में ये बात फेल गई और आज अख़बारों ने उसस चीज़ को दोबारा शेयर किया है कि प्रधानमंत्री जब सीमा पर गए तो जिस असपाताल में गए, वो अस्पताल नहीं था वो कॉन्फ़्रेन्स रूम था और कुछ बिस्तर लगाकर के उसमें स्वस्थ जवानो को बिठाकर उससे अस्पताल का रूप दे दिया गया था। दरसल वो कॉन्फ़्रेन्स हाल पहले प्रचारत होचुका था जब लेफ़्टेनेंट करनाल एम-एस धोनी लेह-लड्डाख गए थे, उनके स्वागत में सेना के जवान उनसे मिलने आए थे क्योंकि धोनी की अपनी क्रिकित की शकसियत थी। उसस चीज़ क्यों दिखा कर के आज सोशल मीडिया के ऊपर कहा जारह है की हमने दुनिया के सामने एक ऐसा लाटक खड़ा कारदिया जहां ना कोई घायल है, जहां ना कोई सेलाइन बोत्तल छड़ी हुई है, ना कोई घायल लेटा है, और ना कोई वेंटिलटर वाहन पर है। मुझे लगता है के ये भारत सरकार से एक बड़ी चूक हुई या रक्षा मंत्रलाए से चूक हुई या भारतीय सैना से चूक हुई। फिर सैना का बयान आया कि वहाँ कौरंटीन करने के लिए हमने उसस कॉन्फ़्रेन्स हाल को बदल दिया और जो घायल सैनिक थे उनके लिए एक वार्ड बना दिया। वार्ड बनाते लेकिन उसमें कुछ तो होता। औकसीजन सिलेंडर होता, वेंटिलेटर होता, सेलाइन होती, कुछ पत्तियाँ बंधी होती हाथ पेर में कहीं, लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। मैं मानता हूँ कि प्रधान मंत्री मोदी को बहकाने वाले उन्हें ग़लत सलाह देने वाले उनके अपने आस-पास काफ़ी ज़्यादा लोग हैं। अगर प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार ये सोच लिया होता तो शायद वो इस्स नाटक में नहीं फँसते। इन सारे सवालों को अब उठाने का कोई मतलब नहीं है, अब समाए है कि हम अपने को एक सम्भावित युद्ध के लिए मानसिक रूप से तय्यार रखें। दरअसल दो मोर्चों पर युद्ध करना है, एक सीमा के ऊपर और दूसरा अर्थ व्यवस्था के मोर्चे पर। अर्थ व्यवस्था के मोर्चे के ऊपर सरकार के पास कोई ब्लूप्रिंट नहीं है देश के लिए कोई रायें और सलाह नहीं है ठीक वेसे ही जेसे कोरोना को लेकर कि सरकार के पास इस्स देश के लोगों के लिए कोई सलाह नहीं है। कोरोना से लड़ने के लिए सरकार ने देश के लोगों को अकेला छोड़ दिया है, उससी तरीक़े से ख़राब अर्थव्यवस्था से लड़ने के लिए भी सरकार लोगों को अकेला छोड़ रही है। सरकार का मौडाल समझ में आरहा है की उसके पास पेसा नहीं है। जितने पब्लिक सेक्टर हैं या जो भी चीज़ बेची जा सकती है जेसे अब रेल्वे की ज़मीन बेची जा रही है। जो पेसा देने वाले रूट हैं, लाभ वाले जो रेल्वे स्टशन हैं, रेल्वे लाइन हैं, वो बेची जा रही हैं, इनमे कब क्या होगा पता नहीं लेकिन सरकार के पास पेसा आजाएगा, कोएला की खदानें बेची जा रही हैं, हवाई रूट्स बेचे जा रहे हैं, तेल की भारतीय कम्पनियाँ लगभग बेच दी गई हैं। जितने भी पब्लिक सेक्टर हैं वो सिखख होगाए हैं और उन्हें बेचने की तय्यारी चाल रही है और सिखख केसे हुए ये अलग कहानी है। सरकार का आत्मनिर्भर होने का शायद यही सोच है लेकिन देश के लोग इस्स सोच से आत्मनिर्भर नहीं होसकते। देश के लोगों को भी अब बेठकर महात्मा गांधी को याद करना होगा अगर उन्हें आत्मनिर्भर होना है। गांधी जी ने जीसस कुटीर उद्योग की बात की थी और गाँव को स्वावलंबी बनाने की बात की थी की गाँव का कोई व्यक्ति गाँव से बाहर जीविकउपार्जन के लिए ना जाए। गांधी का अर्थशास्त्र इस्स गाँव के लोगों को, देश के लोगों को पढ़ना पड़ेगा। सरकार पढ़े या ना पढ़े, सरकार का ध्यान छोड़ कर सरकार क्या करती है क्या नहीं, हमें अपनी खुद की ताक़त पहचान कर और एक कम्यूल सिस्टम में गाँव के लोग मिलकर के गाँव की ज़मीन को किस तरीक़े से पूँजी के रूप में बदल सकते हैं ये सोचना पड़ेगा।गाँव की फ़सल को पूँजी के रूप में केसे बदल जा सकता है इसके बारे में सोचना पड़ेगा। और ये सोचना इसीलिए ज़रूरी है, अगर हमें आत्मनिर्भर होना है और अगर हम आत्मनिर्भर नहीं होंगे तो अभी किसानो की और बेरोज़गारों की आत्महत्याए और बुरी तरह बढ़ेंगी। इसलिए नौजवानों को और जो भी इस्स देश में साँस लेरहे हैं उन्हें इस्स बात की चिंता होनी चाहिए कि इस्स देश के गाँव आत्मनिर्भर केसे हों और अर्थव्यवस्था केसे खड़ी हो इसको लेकर सोच विचार शुरू हो, सेमिनार शुरू हों। आप इसमें अगर सोचेंगे कि टेलीविजन चेनलस इस्स बहस को चलाएँगे तो आप दिन में सपना देख रहे हैं। ये बेहेस हमें हमारे अपने गाँव में, अपने घरों में चलानी पड़ेगी, अपने परिवार में चलानी पड़ेगी तभी हमारे लिए कोई नया रास्ता या नई सम्भावनाएँ खुलेंगी।
…
continue reading
35 episodi